बच्चों को खाना खिलाना सबसे मुश्किल काम है, खासकर सब्जियों से बच्चे अक्सर ही दूर भागते हैं। वहीं फास्टफूड उन्हें लुभाता है, लेकिन वह सेहत के लिए हानिकारक है। बच्चे के खान पान के लिए हमेशा ही मां को जिम्मेदार माना जाता है, लेकिन विज्ञान ऐसा नहीं मानता।
एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि बच्चों की खाने की आदत उनके जेनेटिक्स पर निर्भर करता है ना कि पेरेंटिंग पर। यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के वैज्ञानिकों ने 1,900 जुड़वा बच्चों के खाने की आदत पर अध्ययन किया। 16 महीनों के बच्चों ने अलग-अलग तरह के खाने की तरफ अपनी दिलचस्पी दिखाई।
चाइल्ड साइकोलॉजी और साइकिएट्री जर्नल में लिखते हुए उन्होंने कहा – जन्म के कुछ दिनों बाद बच्चें नए-नए तरह के खानों के संपर्क में आते हैं, कुछ तो उन्हें खाने के लिए तैयार हो जाते हैं लेकिन कुछ कतराते हैं।
इस स्टडी में जुड़वा बच्चों को इसलिए शामिल किया गया क्योंकि जुड़वा बच्चे एक तरह के माहौल में पले-बढ़े होते हैं। एक ही पेरेंट्स दोनों को पालते हैं। बच्चों का खाने के लिए नखरे दिखाना खराब पेरेंटिंग का परिणाम माना जाता है। नए तरह के खाने को खाने से कतराने को फूड ‘नियोफोबिया’ कहा जाता है।
अध्ययन के मुताबिक – यह खराब पेरेंटिंग की वजह से नहीं बल्कि जीन्स की वजह से होती है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं होता कि बच्चों की आदतों को बदला नहीं जा सकता। बच्चों की इन आदतों से पेरेंट्स काफी तनाव में आ जाते हैं। लेकिन इससे परेशान होने की जरूरत नहीं है क्योंकि समय के साथ बच्चों की ये आदतें बदल जाती हैं।
Source: School Life