इन दिनों ज्यादातर अभिभावकों की यह शिकायत रहती है कि उनके बच्चे उनकी बात नहीं सुनते। उनसे कुछ भी कहो वे नजरअंदाज कर देते हैं और जिस काम में लगे हो उसी में व्यस्त रहते हैं। ऐसे में उनके सामने लाउडस्पीकर लेकर भी कुछ कहा जाए तो भी उनकी प्रतिक्रिया में ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। हालांकि वैज्ञनिकों का मानना है कि इसके पीछे वैज्ञानिक कारण है। उनकी यह क्षमता दरअसल मस्तिष्क के विकास प्रक्रिया का अंग है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि बच्चे जानबूझकर ऐसा नहीं करते। वो एक तरह की उपेक्षात्मक दृष्टिबाध्यता से गुज़र रहे होते हैं। यह उपेक्षात्मक दृष्टिबाध्यता, मूलतः देखने और नज़र डालने, सुनने और जो कहा गया है उस पर ध्यान देने के बीच का फ़र्क़ है। इसका परिणाम होता है जागरूकता का अभाव, ख़ासकर उन चीजों के बारे में जो तात्कालिक ध्यान में न हो।
बच्चों और बड़ों में फ़र्क़
यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के इंस्टीट्यूट ऑफ़ कॉग्निटिव न्यूरोसाइंस की प्रोफ़ेसर निली लेवी के अनुसार बच्चे वयस्कों की तुलना में अपने आसपास की जानकारियों के प्रति कम जागरूक होते हैं। प्रोफ़ेसर लेवी के अनुसार – अभिभावकों और देखरेख करने वालों को यह समझना होगा कि किसी मामूली सी चीज़ पर ध्यान केंद्रित करने से भी बच्चे वयस्कों की तुलना में अपने आसपास के परिवेश से ज़्यादा कट जाते हैं।
वह बताती हैं – जैसे, कोई बच्चा अपने कोट के बटन बंद करते हुए सड़क पार करते समय दूसरी तरफ़ से आती हुई गाड़ियों पर शायद ध्यान नहीं दे पाए लेकिन वयस्क आसानी से ऐसा कर पाते हैं। जिस चीज़ पर आपका ध्यान हो उसके अलावा आसपास के परिवेश पर ध्यान देने की योग्यता उम्र के साथ विकसित होती है।
बच्चों की इस प्रवृत्ति के कई बार ख़तरनाक नतीजे भी हो सकते हैं। जैसे अगर मोबाइल पर मैसेज करते समय कोई बच्चा सड़क पार कर रहा हो तो यह उसके लिए ज़्यादा ख़तरनाक हो सकता है। लेकिन बच्चों की इस उपेक्षात्मक दृष्टिबाध्यता का फ़ायदा भी होता है। आख़िर कौन चाहता है कि हर बात पर उसका ध्यान बंटे? अपने परिवेश के प्रति अनभिज्ञ रहने से हमारी एकाग्रता और ध्यान बेहतर होता है।
ज़रूरी है एकाग्रता
मनोवैज्ञानिकों के अनुसार हर किसी में एक हद तक एकाग्रता की एक निश्चित क्षमता ही होती है और जब हम कोई महत्वाकांक्षी कार्य कर रहे होते हैं तो हमें एकाग्रता की बहुत ज़्यादा ज़रूरत होती है। प्रोफ़ेसर लेवी कहती हैं – दिमाग़ का बड़ा हिस्सा इसके लिए समर्पित रहता है। यह बेहद कठिन कार्य है। हम उन चीजों पर तवज्जो नहीं देना चाहते जो महत्वपूर्ण न हों। लेवी कहती हैं – इसके लिए आपको उपेक्षात्मक दृष्टिबाध्यता की ज़रूरत होती है, वरना आप एकाग्रता नहीं बना पाएँगे और ऐसे में दुनिया में जीना मुश्किल हो जाएगा। लेवी कहती हैं कि दिमाग़ हमारे अंदर यह भ्रम पैदा करता है कि वो हर समय हर चीज़ पर नज़र रखे हुए है। और जब हम किसी बहुत ज़ाहिर सी बात पर ध्यान नहीं दे पाते तो आश्चर्यचकित हो जाते हैं।
यूनिवर्सिटी ऑफ़ हर्टफोर्डशायर में मनोविज्ञान के प्रोफ़ेसर रिचर्ड वाइज़मैन ने मनुष्य की दृष्टि क्षमता का विस्तृत अध्ययन किया है। उनके अनुसार यह काफ़ी जटिल चीज़ है। प्रोफ़ेसर वाइज़मैन प्रचलित ‘सेलेक्टिव अटेंशन टेस्ट’ में संशोधन करके इसका प्रयोग करते हैं। इस टेस्ट का विकास डेनियल साइमंस ने किया था। इस टेस्ट में दिखाया जाता है कि एक वीडियो में दिखने वाले एक गोरिल्ला की अनदेखी कर जाना कितना आसान है।
बच्चे और एकाग्रता
प्रोफ़ेसर वाइज़मैन कहते हैं कि रचनात्मक लोग दूसरों के मुक़ाबले चीजों पर ज़्यादा ध्यान दे पाते हैं। वहीं जो लोग काम को लेकर उत्तेजित या परेशान रहते हैं उनके कमरे में मौजूद गोरिल्ला (एक मनोवैज्ञानिक प्रशिक्षण के दौरान) पर ध्यान की संभावना काफ़ी कम होती है। वे कहते हैं सामान्य जीवन में हम कई बार बेहद जाहिर सी बात पर ध्यान नहीं दे पाते क्योंकि हमारा ध्यान उस वक़्त कहीं और पूरी तरह एकाग्र होता है। उदाहरणस्वरूप, कार चालक कहते हैं कि वे पैदल यात्री पर इसलिए ध्यान नहीं दे पाए क्योंकि उनका ध्यान सड़क पर मौजूद किसी और चीज पर था।
वाइज़मैन कहते हैं – बड़े होने के साथ हम सीखते हैं कि क्या ग़ैर ज़रूरी है इसलिए वयस्कों के एक चीज़ से दूसरी चीज़ पर ध्यान ले जाने की संभावना ज़्यादा होती है। जहाँ तक ग़ैर इरादतन उपेक्षा की बात है हम सब इसके शिकार हो सकते हैं। हम सब इसको लेकर शिकवा-शिकायत करते हैं, फिर भी यह आम जीवन के लिए ज़रूरी है।
Source: School Life