बड़े काम की है स्मार्टवॉच, 7 साल पहले ही इस खतरनाक बीमारी की कर सकती है पहचान

जिस तरह स्मार्टफोन हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा बन गए हैं, उसी तरह आज स्मार्टवॉच (Smartphone) भी हमारी जिंदगी में अहम रोल अदा कर रहे हैं। यह सिर्फ समय ही नहीं बताती, बल्कि कई स्मार्टवॉच ब्लूटूथ के साथ आती हैंं। स्मार्टफोन की तरह, एप्स के लिए टच स्क्रीन का इस्तेमाल कर सकते हैं। आप अपने हार्ट की धड़कन को भी नाप सकते हैं। यही नहीं, आप आने वाली फोन कॉल उठा सकते हैं और किसी को फोन कर भी सकते हैं। इसके जरिए ईमेल और टेक्स्ट संदेश भी पढ़ सकते हैं। इसके अलावा और भी बहुत सारे कामों के लिए इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।

हालांकि, स्मार्टफोन को लेकर चौकाने वाला नया खुलासा हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार, लक्षण सामने आने से सात साल पहले तक पार्किंसंस रोग (Parkinson Disease) का पता लगाने में स्मार्टवॉच महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। यह प्रारंभिक सिमटंम्स मस्तिषक को व्यापक नुकसान पहुंचाने से पहले बीमारी के इलाज के लिए रास्ता खोल सकते हैं। नेचर मेडिसिन में प्रकाशित और यूके डिमे ंशिया रिसर्च इंस्टीट्यूट और कार्डिफ यूनिवर्सिटी के न्यूरोसाइंस एंड मेंटल हेल्थ इनोवेशन इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में किए गए अध्ययन में सात दिनों में स्मार्टवॉच द्वारा कैप्चर किए गए मोशन-ट्रैकिंग डेटा का मूल्यांकन किया गया।

शोधकर्ताओं ने पाया कि वे आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का उपयोग करके सटीक भविष्यवाणी कर सकते हैं कि इसे पहनने वालों में से किसे बाद में पार्किंसंस रोग हो सकता है। शोध प्रमुख डॉ. सिंथिया सैंडोर ने द नेशनल को बताया, ‘पार्किंसंस से प्रभावित लोग धीमी गति, कठोरता, समन्वय कठिनाइयों और कंपकंपी जैसे लक्षणों का अनुभव करते हैं। उन्होंने आगे कहा कि महत्वपूर्ण बात यह है कि यह बीमारी व्यक्तियों को नैदानिक निदान प्राप्त होने से कई साल पहले शुरू हो सकती है, जिसके दौरान वे सूक्ष्म मोटर या गैर-मोटर लक्षण प्रदर्शित कर सकते हैं जो अक्सर व्यक्तियों द्वारा ध्यान नहीं दिए जाते हैं।

डॉ. सैंडोर के अनुसार, ‘पार्किंसंस के निदान से पहले व्यक्तियों में नींद की गुणवत्ता और अवधि में कमी के संकेत दिखाई देते हैं। ये व्यक्ति बिना निदान वाले व्यक्तियों की तुलना में सामान्य शारीरिक गतिविधि के दौरान धीमी गति का अनुभव करते हैं। यह अध्ययन पार्किंसंस रोग के लिए एक संभावित नया स्क्रीनिंग टूल साबित हो सकता है, जो वर्तमान तरीकों की तुलना में बीमारी का बहुत पहले चरण में पता लगाने में मददगार होगा। कार्डिफ यूनिवर्सिटी में न्यूरोसाइंस एंड मेंटल हेल्थ इनोवेशन इंस्टीट्यूट में क्लिनिकल सीनियर लेक्चरर डॉ. कैथरीन पील ने कहा, इसका मतलब है कि जैसे-जैसे नए उपचार सामने आने लगेंगे, लोग बीमारी के मस्तिष्क को व्यापक नुकसान पहुंचाने से पहले उन तक पहुंच पाएंगे।



Source: Gadgets